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ज्योति पर्व : ज्योति वंदना / नरेन्द्र शर्मा
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06:38, 8 दिसम्बर 2009
|रचनाकार=नरेन्द्र शर्मा
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जीवन की अंधियारी
:रात हो उजारी!
धरती पर धरो चरण
:तिमिर-तम हारी
परम व्योमचारी!
चरण धरो, दीपंकर,
:जाए कट तिमिर-पाश!
दिशि-दिशि में चरण धूलि
:छाए बन कर-प्रकाश!
आओ, नक्षत्र-पुरुष,
:गगन-वन-विहारी
परम व्योमचारी!
आओ तुम, दीपों को
:निरावरण करे निशा!
चरणों में स्वर्ण-हास
:बिखरा दे दिशा-दिशा!
पा कर आलोक,
:मृत्यु-लोक हो सुखारी
नयन हों पुजारी!
</poem>
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