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गुरिल्ला / अनिल जनविजय

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|संग्रह=कविता नहीं है यह / अनिल जनविजय
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तुम्हारे खेत उनके पास हैं
तुम्हारे खेत की
अब ये खेत भी तुम्हारे हैं।
 
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