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लाल टीका / माखनलाल चतुर्वेदी

No change in size, 05:01, 14 दिसम्बर 2009
मातृ-भू के बोझ, जिस दिन सूलियों ने प्राण पाया!
उस दिवस भी क्या तुझे भारत अखण्ड न याद आया?
:याद भर आता रहे यह लाल टीका*+!
:तरुण अपनाता रहे यह लाल टीका!!
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*+जब दिल्ली के लाल किले में, आज़ाद हिन्द के सैनिकों पर मुकदमा चल रहा था।
</poem>
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