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{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रमा द्विवेदी}}


मेरे घर के चारो ओर हरियाली ही हरियाली है,<br>
रंग-बिरंगे फूलों की सजी-धजी क्यारी है।<br>
लोगों से कई गुना अधिक यहाँ फूल बेशुमार हैं,<br>
पर जहाँ देखो वहां गाडियों की कतार है॥<br><br>
घर में है बगीचा या बगीचे में है घर,<br>
होता है मुझे भ्रम यह अक्सर।<br>
पर मेरे मन में है पतझड,<br>
यहाँ आदमी कम ही होता है दृष्टिगोचर॥<br><br>
कितना दुख है अकेलेपन का यहाँ ?<br>
कितना इन्तज़ार है किसी के होने का यहाँ ?<br>
मेरा मन तड़पता है किसी से मिलने को यहाँ,<br>
लड़ने-झगड़ने व रोने-हँसने को यहाँ॥<br><br>
फूलों की ओर एकटक देखती हूं मैं,<br>
कितने खुश हैं ये अकेले रह कर यहाँ ?<br>
मेरे मन में क्यों इतना गहरा अंधकार है?<br>
क्यों मुझे किसी से मिलने का इन्तजार है?<br><br>
अकेलापन मानव को दीमक की तरह खा जाता है,<br>
आत्मीयता में मानव अदृश्य- शक्ति पाता है।<br>
काश! मुझे भी यहाँ अपनेपन का अहसास होता,<br>
मेरे मन का सुकून यहाँ यूँ तो न खोता॥<br><br>


(अमेरिका प्रवास के समय लिखी गई कविता)
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