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{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= रमा द्विवेदी
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<poem>
{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रमा द्विवेदी}}कोमल बचपन पत्थर से गम सहते हैं।रूखे अधर, आंख में पानी,बचपन जाने से पहले ही बीती जाय जवानी,नहीं पसीजे कोई इनके दुख सेचीख-चीख यह कहते हैं ......
भोजन, कपडा नहीं बराबर,
इनके लिए दिन-रात परिश्रम,
खा पीकर जब करते सब आराम,
काम तब भी ये करते हैं.......
कोमल बचपन पत्थर से गम सहते हैं।<br>br>रूखे अधर, आंख में पानी,<br>बचपन जाने से पहले ही बीती जाय जवानी,<br>नहीं पसीजे कोई इनके दुख से<br>चीख-चीख यह कहते हैं .......<br><br>भोजन, कपडा नहीं बराबर,<br>इनके लिए दिन-रात परिश्रम,<br>खा पीकर जब करते सब आराम,<br>काम तब भी ये करते हैं.......<br><br>कैसी आज़ादी जहाँ सुकुमारता बंधक है?<br>बडे-बडे कानून हैं पर इनका कोई न रक्षक है?<br>नारे लगाते बड़े-बड़े फिर भी,<br>इनका दुख न कोई हरते हैं.....<br><br>  उनके अन्तस के चीत्कार को,<br>कौन सुनेगा उनकी पुकार को?<br>पग-पग पर ठोकर खाते,<br>फिर भी प्रतिकार न करते हैं.....<br><br> जीने का हक इन्हें भी दे दो,<br>अधिकार,प्यार इन्हें भी दे दो,<br>इनका जीवन बदलेंगे हम,<br>संकल्प आज ये करते हैं......<br><br/poem>