Changes

झरना (कविता) / जयशंकर प्रसाद

66 bytes removed, 18:46, 19 दिसम्बर 2009
|संग्रह=झरना / जयशंकर प्रसाद
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी
न हैं उत्पात, छटा हैं छहरी
मनोहर झरना।
कठिन गिरि कहाँ विदारित करना बात कुछ छिपी हुई हैं गहरी मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी<br>न हैं उत्पात, छटा हैं छहरी<br>मनोहर झरना।<br><br>
कठिन गिरि कहाँ विदारित करना<br>कल्पनातीत काल की घटना बात कुछ छिपी हुई हैं गहरी<br>हृदय को लगी अचानक रटना मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी<br><br>देखकर झरना।
प्रथम वर्षा से इसका भरना स्मरण हो रहा शैल का कटना कल्पनातीत काल की घटना<br>हृदय को लगी अचानक रटना<br>देखकर झरना।<br><br>
प्रथम वर्षा से इसका भरना<br>कर गई प्लावित तन मन सारा स्मरण हो रहा शैल का कटना<br>कल्पनातीत काल एक दिन तब अपांग की घटना<br><br>धारा हृदय से झरना-
बह चला, जैसे दृगजल ढरना। प्रणय वन्या ने किया पसारा कर गई प्लावित तन मन सारा<br>एक दिन तब अपांग की धारा<br>हृदय से झरना-<br><br>
बह चला, जैसे दृगजल ढरना।<br>प्रेम की पवित्र परछाई में प्रणय वन्या ने किया पसारा<br>लालसा हरित विटप झाँई में कर गई प्लावित तन मन सारा<br><br>बह चला झरना।
प्रेम की पवित्र परछाई में<br>लालसा हरित विटप झाँई में<br> बह चला झरना।<br><br> तापमय जीवन शीतल करना <br> सत्य यह तेरी सुघराई में<br>प्रेम की पवित्र परछाई में॥ <br><br/poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits