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प्रथम प्रभात / जयशंकर प्रसाद

96 bytes added, 19:40, 19 दिसम्बर 2009
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|रचनाकार=जयशंकर प्रसाद
|संग्रह=कानन-कुसुम / जयशंकर प्रसाद
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मनोवृत्तियाँ खग-कुल-सी थी सो रही,
 
अन्तःकरण नवीन मनोहर नीड़ में
 
नील गगन-सा शान्त हृदय भी हो रहा,
 
बाह्य आन्तरिक प्रकृति सभी सोती रही
 
स्पन्दन-हीन नवीन मुकुल-मन तृष्ट था
 
अपने ही प्रच्छन्न विमल मकरन्द से
 
अहा! अचानक किस मलयानिल ने तभी,
 
(फूलों के सौरभ से पूरा लदा हुआ)-
 
 
आते ही कर स्पर्श गुदगुदाया हमें,
 
खूली आँख, आनन्द-हृदय दिखला दिया
 
मनोवेग मधुकर-सा फिर तो गूँजके,
 
मधुर-मधुर स्वर्गीय गान गाने लगा
 
 
वर्षा होने लगी कुसुम-मकरन्द की,
 
प्राण-पपीहा बोल उठा आनन्द में,
 
कैसी छवि ने बाल अरुण सी प्रकट हो,
 
शून्य हृदय को नवल राग-रंजित किया
 
सद्यःस्नात हुआ फिर प्रेम-सुतीर्थ में,
 
मन पवित्र उत्साहपूर्ण भी हो गया,
 
विश्व विमल आनन्द भवन-सा बन रहा
 
मेरे जीवन का वह प्रथम प्रभात था
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