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::::व्यक्ति-राष्ट्र-गत राग-द्वेष रण,
::::झरें, मरें विस्मृति में तत्क्षण!
गा, कोकिल, गा,--कर मत चिन्तन!
::नवल रुधिर से भर पल्लव-तन,
::नवल स्नेह-सौरभ से यौवन,