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::गा, कोकिल, नव गान कर सृजन!
::::रच मानव के हित नूतन मन,
::::वाणी, वेश, भाव नव शोभन,::::स्नेह, सुहृदता हो मानस-घन,::::करें मनुज नव जीवन-यापन!गा, कोकिल, संदेश सनातन!::मानव दिव्य स्फुलिंग चिरन्तन,::वह न देह का नश्वर रज-कण!::देश-काल हैं उसे न बन्धन,::मानव का परिचय मानवपन!::::कोकिल, गा, मुकुलित हों दिशि-क्षण!
'''रचनाकाल: मई’१९३५अप्रैल’१९३५'''
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