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वहीं बंगाल--
जिसकी एक साँस ने भर दी
मेरे मरे देश में जान,आत्म सम्मा नसम्मान,
आजादी की आन,
आज,
काल की गति भी कैसी, हाय,
स्व यं स्वयं असहाय,स्व यं स्वयं निरुपाय,स्व यं निष्प्रा णस्वयं निष्प्राण,मृत्यु के भुख से मुख का होकर ग्रसग्रास,गिन रहा है जीवन की साँस-साँस।
हे कवि, तेरे अमर गान की
सुजला, सुफला,
मलय गंधिता
शस्यग श्याफमलाशस्य श्यामला,फुल्लं फुल्ल कुसुमिता,
द्रुम सुसज्जिता,
चिर सुहासिनी,
धरणी भरणी,
जगत वन्दिता
बंग भूमी भूमि अब नहीं रही वह! बंग भूमी अब शस्यभ शस्य हीन है,
दीन क्षीण है,
चिर मलीन है,
भरणी आज हो गई है हरणी;जल दे, फल दे और अन्नग अन्न देजो करती थी जीव जीवन दान,मरघट-सा अब रुप रूप बनाकर,
अजगर-सा अब मुँह फैलाकर
खा लेती अपनी संतान!
बच्चे और बच्चियाँ खाती,
लड़के और लड़कियाँ खाती,
खाती युवक, युवतियाँ खाती,
खाती बूढ़े और जवान,
निर्ममता से एक समान;
बंग भूमि बन गई राक्षसी--
कहते ही लो कटी ज़बान!...
बोल बंग की वीर मेदिनीराम-रमा!क्षमा-क्षमा!माता को राक्षसी कह गया!पाप शांत हो,अब वह तेरी आग कहाँ हैदूर भ्रान्ति हो।ठीक,अन्नपूर्णा के आँचलआज़ादी का राग कहाँ में हैसर्वस,लगन कहाँ हैअन्न तथा रस, लाग कहाँ पड़ा न सूखा,बाढ़ न आईऔर नहीं आया टिड्डी दल,किन्तु बंग हैभूखा, भूखा, भूखा!माता के आँचल की निधियाँअरे लूटकर कौन ले गया?
बोल बंग के वीर मेदिनी,अब तेरे सिरताज कहाँ हैं,अब तेरे जाँबाज़ कहाँ हैं,अब तेरी आवाज़ कहाँ हैं! बंकिम ने गर्वोन्नँत ग्रीवाउठा विश्वग सेथा यह पूछा,'के बले मा, तुमि अबले?' मैं कहता हूँ,हाथ न बढ़ तू अबला है।तू होती, मा,अगर न निर्बलठहर लेखनी,अगर न दुर्बलचलेगी,तो तेरे यह लक्-लक्ष सुतवंचित रहकर उसी अन्ने सेझूठ कहेगी,उसी धान्यर सेजिस हाथों पर हथकड़ी पड़ी है अधिकार इन्हींं का,क्योंर कि इन्होंकने अपने श्रम सेसच कहने की सज़ा बड़ी है,जोता, बोयापड़े जबानों पर हैं ताले,इसे उगायानहीं जबानों पर, मुँह पर भी,सींच स्वे द सेपड़े हुए प्राणों के लाले--इसे बढ़ाया,काटा, मारा, ढोया,बरस-बरस के पोसे पाले
भूख-भूख कर,
सूख-सूखकर,
पंजर-पंजरदारुण दुख सह,गिर धरती परलेकिन चुप रह,यों न तोड़ देते अपना दमजाते हैं मर,और नपुंसक मृत्युअ न मरते।जाते हैं झरभूखे बंग देश जैसे पत्ते किसी वृक्ष के वासी!पीले, ढीलेछाई है मुरदनी मुखों झंझा के चलने पर,!आँखों में है धँसी उदासी;विपद् ग्रस्त हो,क्षुधा त्रस्तध हो,चारों ओर भटके फिरते,लस्तंकृमि-पस्त, होऊपर को तुम हाथ उठाते। मुझसे सुन लो,नहीं स्वनर्ग से अन्न गिरेगा,नहीं गिरेगी नभ से रोटी;किन्तुि समझ लो,इस दुनिया कीटों की प्रति रोटी में,इस दुनिया के हर दाने में,एक तुम्हा रा भाग लगा है,एक तुम्हाररा निश्चित हिस्साा,उसे बँटाने,उसको लेने,उसे छिनने,औ' अपनाने,को जो कुछ भी तुम करते हो,सब कुछ जायज,सब कुछ रायज। नए जगत में आँखें खालों,नए जगगत की चालें देखों,नहीं बुद्धि से कुछ समझा तोठोकर खाकर तो कुछ सीखों,और भुलाओ पाठ पुराने। मन से अब संतोष हटाओ,असंतोष का नाद उठाओ,करो क्रांति का नारा ऊँचा,भूखों, अपनी भूख बढ़ाओ,और भूख की ताकत समझो,हिम्मखत समझो,जुर्रत समझो,कूबत समझो;देखो कौन तुम्हासरे आगेनहीं झुका देता सिर अपना। हमें भूख का अर्थ बताना,भूखों, इसको आज समझ लो,मृत्यु किस तरहमरने का यह नहीं बहानाहोती इससे बदतर!
फिर से जीवित,
फिर से जाग्रतत,
फिर से उन्नरत
होने का है भूख निमंत्रण,
है आवाहन।
भूख नहीं दुर्बल, निर्बल है,
भूख सबल है,
भूख प्रबल हे,
भूख अटल है,
भूख कालिका है, काली है;
या काली सर्व भूतेषु
क्षुधा रूपेण संस्थिता,
नमस्तासै, नमस्तलसै,
नमस्तासै नमोनम:!
भूख प्रचंड शक्तिशाली है;
या चंडी सर्व भूतेषु
क्षुधा रूपेण संस्थिता,
नमस्तासै, नमस्तलसै,
नमस्तासै नमोनम:!
भूख्ा अखंड शौर्यशाली है;
या देवी सर्व भूतेषु
क्षुधा रूपेण संस्थिता,
नमस्तासै, नमस्तलसै, नमस्तशसै नमोनम:!
भूख भवानी भयावनी है,
अगणित पद, मुख, कर वाली है,
बड़े विशाल उदारवाली है।
भूख धरा पर जब चलती है
वह डगमग-डगमग हिलती है।
वह अन्यापय चबा जाती है,
अन्या्यी को खा जाती है,
और निगल जाती है पल में
आतताइयों का दु:शासन,
हड़प चुकी अब तक कितने ही
अत्याचचारी सम्राटों के
छत्र, किरीट, दंड, सिंहासन!
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