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कवि क़ाज़ी नज़रुलिस्लाम की।
बोल अमर अजर पुत्रों की जननी--
जननी, भावी के वर द्रष्टा,
राजा मोहन राय सुधी की,
छद्म वेष में घूम-घूमकर
अलख जगाता है हुब्बुल वतनी का।
और शहीद यतींद्र धीर की
जिसने बंदीघर के अंदर
पल-पल गल-गल,
पल-पल घुल-घुल,
तिल-तिल मिट-मिट,
एकसठ दिन तक
अनशन व्रत रखकर
प्राण त्यागकर
यह बतलाया था हो बंदी देह
मगर आत्मा स्वतंत्र है!
बोल अमर पुत्रों की जननी,
बोल अजर पुत्रों की जननी,
बोल अभय पुत्रों की जननी,
बोल बंग की वीर मेदिनी,
अब वह तेरा मान कहाँ है,
अब वह तेरी शान कहाँ है,
जीने का अरमान कहाँ है,
मरने का अभिमान कहाँ है!
बोल बंग की वीर मेदिनी,
अब वह तेरा क्रोध कहाँ है,
तेरा विगत विरोध कहाँ है,
अनयों का अवरोध कहाँ है!
भूलों का परिशोध कहाँ है!
बोल बंग की वीर मेदिनी,
अब वह तेरी आग कहाँ है,
आज़ादी का राग कहाँ है,
लगन कहाँ हैहैं, लाग कहाँ है!
बोल बंग के की वीर मेदिनी,
अब तेरे सिरताज कहाँ हैं,
अब तेरे जाँबाज़ कहाँ हैं,
अब तेरी आवाज़ कहाँ हैं!
बंकिम ने गर्वोन्नँत गर्वोन्नत ग्रीवाउठा विश्वग विश्व से
था यह पूछा,
'के बले बोले मा, तुमि अबले?'
मैं कहता हूँ,
अगर न निर्बल,
अगर न दुर्बल,
तो तेरे यह लक्लक्ष-लक्ष सुतवंचित रहकर उसी अन्ने अन्न से,उसी धान्यर धान्य सेजिस पर जिसपर है अधिकार इन्हींं इन्हीं का,क्योंर कि इन्होंकने क्योंकि इन्होंने अपने श्रम से
जोता, बोया,
इसे उगाया,
सींच स्वे द स्वेद से
इसे बढ़ाया,
काटा, मारामाड़ा, ढोया,
भूख-भूख कर,
सूख-सूखकर,
गिर धरती पर,
यों न तोड़ देते अपना दम
और नपुंसक मृत्युअ मृत्यु न मरते।भूखे बंग देश के वासी! छाई है मुरदनी मुखों पर,आँखों में है धँसी उदासी;विपद् ग्रस्त हो,क्षुधा त्रस्तध हो,चारों ओर भटके फिरते,लस्तं-पस्त, होऊपर को तुम हाथ उठाते। मुझसे सुन लो,नहीं स्वनर्ग से अन्न‍ गिरेगा,नहीं गिरेगी नभ से रोटी;किन्तुि समझ लो,इस दुनिया की प्रति रोटी में,इस दुनिया के हर दाने में,एक तुम्हा रा भाग लगा है,एक तुम्हाररा निश्चित हिस्साा,उसे बँटाने,उसको लेने,उसे छिनने,औ' अपनाने,को जो कुछ भी तुम करते हो,सब कुछ जायज,सब कुछ रायज। नए जगत में आँखें खालों,नए जगगत की चालें देखों,नहीं बुद्धि से कुछ समझा तोठोकर खाकर तो कुछ सीखों,और भुलाओ पाठ पुराने। मन से अब संतोष हटाओ,असंतोष का नाद उठाओ,करो क्रांति का नारा ऊँचा,भूखों, अपनी भूख बढ़ाओ,और भूख की ताकत समझो,हिम्मखत समझो,जुर्रत समझो,कूबत समझो;देखो कौन तुम्हासरे आगेनहीं झुका देता सिर अपना। हमें भूख का अर्थ बताना,भूखों, इसको आज समझ लो,मरने का यह नहीं बहाना! फिर से जीवित,फिर से जाग्रतत,फिर से उन्नरतहोने का है भूख निमंत्रण,है आवाहन। भूख नहीं दुर्बल, निर्बल है,भूख सबल है,भूख प्रबल हे,भूख अटल है,भूख कालिका है, काली है;या काली सर्व भूतेषुक्षुधा रूपेण संस्थिता,नमस्तासै, नमस्तलसै,नमस्तासै नमोनम:!भूख प्रचंड शक्तिशाली है;या चंडी सर्व भूतेषुक्षुधा रूपेण संस्थिता,नमस्तासै, नमस्तलसै,नमस्तासै नमोनम:!भूख्‍ा अखंड शौर्यशाली है;या देवी सर्व भूतेषुक्षुधा रूपेण संस्थिता,नमस्तासै, नमस्तलसै, नमस्तशसै नमोनम:! भूख भवानी भयावनी है,अगणित पद, मुख, कर वाली है,बड़े विशाल उदारवाली है।भूख धरा पर जब चलती हैवह डगमग-डगमग हिलती है।वह अन्यापय चबा जाती है,अन्या्यी को खा जाती है,और निगल जाती है पल मेंआतताइयों का दु:शासन,हड़प चुकी अब तक कितने हीअत्याचचारी सम्राटों केछत्र, किरीट, दंड, सिंहासन! 
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