भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े -मज़े की हिकायतें <br>
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के न याद हो
वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेश्तर, वो करम के हाथ मेरे हाथ पर <br>
मुझे सब हैं याद ज़रा -ज़रा, तुम्हें याद हो कि न याद हो
वो बिगड़ना वस्ल की रात का, वो न मानना किसी बात का <br>
वो नहीइं नहीं-नहीं की हर आन अदा, तुम्हें याद हो कि न याद हो
जिसे आप गिन्ते गिनते थे आश्ना जिसे आप कहते थे बावफ़ा <br>
मैं वही हूँ "मोमिन"-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो