भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्या तुमने भी सुना / मोहन राणा

39 bytes added, 11:58, 26 दिसम्बर 2009
|संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदी / मोहन राणा
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
चलती रही सारी रात
 
तुम्हारी बेचैनी लिज़बन की गीली सड़कों पर
 
रिमझिम के साथ
 
मूक कराह कि
 
जिसे सुन जाग उठा बहुत सबेरे,
 
कोई चिड़िया बोलती झुटपुटे में
 
जैसे वह भी जाग पड़ी कुछ सुनकर
 
सोई नहीं सारी रात कुछ देखकर बंद आँखों से !
 
चलती रही तुम्हारी बेचैनी
 
मेरे भीतर
 
टूटती आवाज़ समुंदर के सीत्कार में
 
उमड़ती लहरों के बीच,
 
चादर के तहों में करवट बदलते
 
क्या तुमने भी सुना उस चिड़िया को
 '''रचनाकाल: 6.4.2002 सज़िम्ब्रा, पुर्तगाल</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits