भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सवाल / मोहन राणा

32 bytes added, 12:26, 26 दिसम्बर 2009
|संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदी / मोहन राणा
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
क्या यह पता सही है?
 
मैं कुछ सवाल करता
 
सच और भय की अटकलें लगाते
 
एक तितर-बितर समय के टुकड़ों को बीनता
 
विस्मृति के झोले में
 
और वह बेमन देता जवाब
 
अपने काज में लगा
 
जैसे उन सवालों का कोई मतलब ना हो
 
जैसे अतीत अब वर्तमान ना हो
 
बीतते हुए भविष्य को रोकना संभव ना हो
 
जैसे यह जानकर भी नहीं जान पाऊंगा
 
मैं सच को
 
वह समझने वाली बाती नहीं
 
कि समझा सके कोई सच,
 
आधे उत्तरों की बैसाखी के सहारे
 
चलता इस उम्मीद में कि आगे कोई मोड़ ना हो
 
कि कहीं फिर से ना पूछना पड़े
 
किधर जाता है यह रास्ता,
 
समय के एक टुकड़े को मुठ्ठी में बंदकर
 
यही जान पाता कि सब-कुछ
 
बस यह पल
 
हमेशा अनुपस्थित
   '''रचनाकाल: 12.7.</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits