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<poem>
मनाना चाहता है आज ही ?
-तो मान ले
त्यौहार का दिन आज ही होगा !
उमंगें यूँ अकारण ही नहीं उठती,
न अनदेखे इशारे पर कभी यूँ नाचता मन ;
खुले से लग रहे हैं द्वार मंदिर के .
बढ़ा पग-
मूर्ति के श्रींगार का दिन आज ही होगा !
न जाने आज क्योँ दिल चाहता है-
स्वर मिला कर
अनसुने स्वर में किसी की कर उठे जयकार!
न जाने क्यूँ
बिना पाए हुए भी दान याचक मन ,
विकल है वयक्त करने के लिए आभार !
प्रेरणा का श्रोत होगा ही-
उमंगें यूँ अकारण ही नहीं उठती ,
नदी में बाढ़ आई है कंही पानी गिरा होगा !
अचानक सिथिल-बंधन हो रहा है आज
मोक्ष्सान बंदी मन -
किसी की तो कंही कोई भगीरथ -साधना पूरी हुई होगी,
किसी भागीरथी के भूमि पर अवतार का दी आज ही होगा !
मनाना चाहता है आज ही ?
-तो मान ले
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