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देवरस-दानवरस / नागार्जुन

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|संग्रह=खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन
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देवरस-दानवरस
 
पी लेगा मानव रस
 
होंगे सब विकृत-विरस
 
क्या षटरस, क्या नवरस
 
होंगे सब विजित-विवश
 
क्या तो तीव्र क्या तो ठस
 
देवरस- दानवरस
 
पी लेगा मानव रस
 
सर्वग्रास-सर्वत्रास
 
होगा अब इतिहास
 
फैलाएगा उजास
 
पशु-विप्लव पशु-विलास
 
जन-लक्ष्मी अति उदास
 
छोड़ेगी बस उसाँस
 
चरेगी हरी घास
 
संस्कृति की गलित लाश
 
कूड़ों के आस-पास
 
ढूंढेंगे प्रात-राश
 
ग्रामदास- नगरदास
 
देखेगा जग विकास
 
अंत्योदय-अंत्यनाश
 
होगा अब इतिहास
 
सर्वत्रास-सर्वग्रास
 
(रचनाकाल : 1978)
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