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|रचनाकार=रमा द्विवेदी
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पल-पल रिश्ते भी मुरझाते हैं
उम्र बढते-बढते वे घटते जाते हैं।
मानव कुछ और की चाह बढाते हैं,
इसलिए वे कहीं और भटक जातेहैं॥
पल-पल रिश्ते भी मुरझाते हैं<br>का जो पक्ष कमजोर है, उम्र बढते-बढते वे घटते जाते हैं।<br>समय उसको ही देता झकझोर है। मानव कुछ और अतीत की चाह बढाते हैंगवाही नहीं चलती वहां,<br>इसलिए वे कहीं और भटक जातेहैं॥<br><br>मानव सुख की पूंजी का जमाखोर है॥
रिश्ते का जो पक्ष कमजोर है,<br>समय उसको ही देता झकझोर है।<br>अतीत की गवाही नहीं चलती वहां,<br>मानव सुख की पूंजी का जमाखोर है॥<br><br> मानव एक रिश्ते को तोड,दूसरे को अपनाता है,<br>अब तक के सारे कसमें-वादे भूल जाता है।<br>मानव से अधिक स्वार्थी न कोई होगा जहां में,<br>अपनी तनिक खुशी के लिए वो दूसरों के घर जलाता है॥ <br> <br/poem>
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