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वटवृक्ष मत बनो / रमा द्विवेदी

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हे मानव !
तुम वटवृक्ष मत बनो<br>नई पौध को भी उगने दो<br>माना कि तुम महान हो<br>सुदृढ़ शक्तिमान हो,<br>इसलिए जमकर डटे हो,<br>नहीं फटकने देते किसी को,<br>इसलिए सदियों तक खड़े हो।<br><br>  पूरी जीवन-ऊर्जा अगर तुम ही ले लोगे,<br>तो आस-पास के पौधों का क्या होगा?<br>मर जायेंगे वे असमय में ही,<br>वह भी तुम्हारे कारण <br> क्योंकि तुम्हारी छाया में<br>कोई पौधा पनप नहीं सकता।<br><br>  तुम्हारी महानता इसमें नहीं<br>कि तुम किसी को पनपने न दो<br>तुम अगर छाया न भी दो<br>तो कोई अन्य पेड़ छाया देगा<br>किन्तु तुम्हारी तरह<br>जीवन तो नहीं छीनेगा।<br><br>  अच्छी तरह सोच लो<br>अन्य पेड़ हैं इसलिए<br>तुम्हारा अस्तित्व महान है।<br><br> लघुता न हो तो गुरुता का महत्व क्या?<br>रात न हो तो दिन का अस्तित्व क्या?<br>सबलता अगर किसी के काम न आए?<br>तो वह धरती पर बोझ बन जाती है<br>और धरती भी उसके बोझ से<br>मुक्त होना चाहती है। <br><br/poem>
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