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Kavita Kosh से
हरी-हरी घास जैसे मखमल का गलीचा
मन को सहज ही मोह लेता है,
जैसे कहता हो-<b>
देखो,मैं अकेला ही हँस रहा हूँ,
तुम भी हँसो,