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{{KKCatKavita}}{{KKRachna |रचनाकार=रमा द्विवेदी }}{{KKCatKavita}}{{KKCatGeet}}<poem>कौन कहता है केवल शराब में है नशा? हम सबको यहां कोई न कोई है नशा? नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥
कर्म में है नशा, धर्म में है नशा,
मर्म में है नशा, शर्म में है नशा,
सच पूछिए ज़नाब तो अधर्म में भी है नशा।
नशा ही नशा है हर चीज में है नशा॥