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|रचनाकार = राकेश खंडेलवाल
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हर मौसम फ़ागुन के रंगों में रंग लिया भावनाऒ ने
एक तुम्हारी छवि नयनों ने भित्तिचित्र कर कर टांकी है
हर मौसम फ़ागुन के रंगों में रंग लिया भावनाऒ ने<br>एक तुम्हारी छवि नयनों ने भित्तिचित्र अगवानी को आज पंथ पर पांखुर बन कर कर टांकी है<br><br>बिछीं निगाहें पगरज को सिन्दूर बना लेने को आतुर हैं सब राहें कौआ चांदी नित्य भोर से छतें लगीं हैं आज सजाने रुकी हुइ पुरबाई पथ में, स्वागत करने फ़ैला बाहें
अगवानी को आज पंथ पर पांखुर बन कर बिछीं निगाहें<br>पगरज को सिन्दूर बना लेने को आतुर हैं सब राहें<br>कौआ चांदी नित्य भोर से छतें लगीं हैं आज सजाने<br>रजनी जाना नहीं चाहती, थकी प्रतीची उसे बुलाते रुकी हुइ पुरबाई पथ मेंहो अधीर मुड़ मुड़ देखा है, स्वागत करने फ़ैला बाहें<br><br>राह तुम्हारी ही ताकी है
रजनी जाना नहीं चाहती, थकी प्रतीची उसे बुलाते<br>सुरभित आशायें प्राची को लगीं और लज्जानत करने हो अधीर मुड़ मुड़ देखा हैरंग अलक्तक के पांवों पर, राह तुम्हारी ही ताकी है<br><br>लगे और कुछ अधिक उभरने करने लगा बात बुन्दों से झूम झूम माथे का टीका चन्द्रहार के माणिक मन की हर धड़कन को आये सुनने
सुरभित आशायें प्राची को लगीं और लज्जानत करने<br>रंग अलक्तक के पांवों पर, सजने लगे और अचानक सारे क्षण अनजाने ही कुछ अधिक उभरने<br>ऐसे करने लगा बात बुन्दों से झूम झूम माथे का टीका<br>चन्द्रहार के माणिक मन स्वयं पी रही प्याले भर भर, सुधियों की हर धड़कन को आये सुनने<br><br>पागल साकी है
सजने लगे अचानक सारे क्षण अनजाने ही कुछ ऐसे<br>मिलते स्पर्श तुम्हारा होगी मेंहदी से रंगीन हथेली स्वयं पी रही प्याले भर अँगनाई में अँगड़ाई लेगी आ आ कर भोर नवेली कंगन के साजों पर चूड़ी छेड़ेगी नव मेघ मल्हारें पुरबाई बाँहों में भर, सुधियों की पागल साकी है<br><br>कर मुझे बनेगी नई सहेली
मिलते स्पर्श तुम्हारा होगी मेंहदी से रंगीन हथेली<br>अँगनाई में अँगड़ाई लेगी आ आ कर भोर नवेली<br>कंगन के साजों पर चूड़ी छेड़ेगी नव मेघ मल्हारें<br>पुरबाई बाँहों में भर कर मुझे बनेगी नई सहेली<br><br> जागी हुई कल्पना आकर भरती मुझको मधुपाशों में<br>
उम्र प्रतीक्षा वाली निशि की और नहीं ज्यादा बाकी है
</poem>
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