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|संग्रह=कुछ आकाश / प्रेमशंकर शुक्ल
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पूरा करने के लिए
 
बचा है
 
कुछ आकाश
 
गा देता है जो जितना
 
हो जाता है
 
उतना वह पूरा
 
अपनी चहचह से चिड़ियाँ
 
बना रहीं नित नया आकाश
 
गाती-गुनगुनाती मेहनतकश स्त्रियाँ
 
आकाश के रचाव को
 
बढ़ा रहीं आगे
 
अधूरा है आकाश
 
कह देता है जो जितना
 
हो जाता है उतना वह पूरा
 
जीवन की आवाज़ और रंगत से ही
 
बनता-तनता है इसका वितान
 
जीवन का पानी है
 
जिन आँखों में
 
बनाने के अध्याय में
 
शामिल है नाम
 
उनका ही।
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