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|संग्रह=संतरण / महेन्द्र भटनागर
}}
{{KKCatKavita}}<poem>फूल जो मुरझा रहे<br>जग-वल्लरी पर<br>:अधखिले<br>कारण उसी का खोजता हूँ !<br><br>
हे प्राण !<br>मुझको माफ़ करना<br>यदि तुम्हारे गीत कुछ दिन<br>मैं न गाऊँ !<br>स्वर्ण आभा-सा<br>सुवासित तन तुम्हारा देख<br>अनदेखा करूँ,<br>छवि पर न मोहित हो<br>तनिक भी मुसकराऊँ !<br><br>
फूल जब मुरझा रहे<br>वसुधा बनी विधवा<br>सुमुखि !<br>फिर अर्थ क्या शृंगार का,<br>पग-नूपुरों की गूँजती झंकार का ? <br><br>
हर फूल खिलने दो ज़रा,<br>डालियों पर प्यार हिलने दो ज़रा !<br/poem>
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