भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह=मृत्यु-बोध / महेन्द्र भटनागर
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
समर —
अब कहाँ है ?
सफ़र —
अब कहाँ है ?
थम गया सब
बहता उछलता नदी-जल तरल,
जम गया सब —
नसों में रुधिर की तरह !
दर्द से
देह की हड्डियाँ सब
चटखती लगातार,
अब कौन
इन्हें दबाए
टूटती आख़िरी साँस तक ?
अँधेरे-अँधेरे घिरे
जब न कोई
पास तक !
लहर अब कहाँ
एक ठहराव है,
ज़िन्दगी अब —
शिथिल तार;
बिखराव है !</poem>