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|संग्रह=जूझते हुए / महेन्द्र भटनागर
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गह-गह
कुछ ऐसा फूला कचनार<br>गदराई हर डार !<br><br>
इतना लहका<br>इतना दहका<br>अन्तर की गहराई तक<br>पैठ गया कचनार !<br><br>
जामुन रंग नहाया<br>मेरे गैरिक मन पर छाया<br>छज्जों और मुँडेरों पर<br>जम कर बैठ गया कचनार !<br><br>
पहली बार<br>मेरे द्वार<br>कुछ ऐसा झूमा कचनार<br>रोम-रोम से <br> जैसे उमड़ा प्यार !<br>अनगिन इच्छाओं का संसार !<br>पहली बार <br> ऐसा अद्भुत उपहार ! <br><br/poem>