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{{KKRachna
|रचनाकार=धर्मवीर भारती
|संग्रह=मेरी वाणी गैरिक वासना}} {{KKCatKavita}}[[Category: मुक्तक]]<poem>ईश्वर न करे तुम कभी ये दर्द सहो
दर्द, हाँ अगर चाहो तो इसे दर्द कहो
मगर ये और भी बेदर्द सजा है ए दोस्त!
कि हाड़ हाड़ चिटख जाए मगर दर्द न हो!</poem>