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|रचनाकार=पन्ना दाई
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<poem>
मैं तो चरण-कमल पर वारि!
बलिहारी जाऊँ अपने पिया के, तन मन धन से वारि।
कोई जाए गंगा जमुना, मैं या चरनन आऊँ।
साँझ-सवेरे चरण-धूलि का माथे तिलक लगाऊँ।।
शोभा जिसकी न्यारी। मैं तो चरण-कमल पर वारि!...
दोनों नैन बसे या चरनन, या चरनन बहु प्यारे।
जो नारी पति चरनन पूजे, वो बैकुण्ठ सिधारे।।
लाज रखे गिरधारी। मैं तो चरण-कमल पर वारि!...
</poem>