Changes

लहरें पढती हैं
चांद की रूपहली लिखावट
आैर और पुलक से खिल पड़ती है
गंगा की स्मृतियों की
कथा पढ़कर।
चांदनी चूमकर
आती है गंगा नदी को
आैर और फिर-फिर चूमती है
सूरीनामी नदी को।
सूरीनाम नदी की जल-देह में है
अटलांिटक अटलांटिक महासागर का अंतरंग आवेगतट को समेटता आैर और समाता हुआ
पारामारिबो की धरती पर
लिखता है अपनी ही प्रणय-पाती।
प्रवासी भारतीय
जाता है सूयार्स्त के बाद
आैर और सुनता है नदी की आवाज
मौन होकर
शायद लहिरयों में से छन आए
तट-माटी की देह में
खोजता है - आजी की गोद
आैर और आजा की छाती
जिसे बचपन में
कभी लीपा था अपनी लार से
प्यार से भरकर
आैर और पिया था -आजी के चंुबन चुंबन में से
आजादी की चाहत।
जैसे आजी के आंचल में
सौंपता हैं अपने आंसू
आैर और नदी के बहाने
छूता है अपने पूवर्जों के
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits