भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKRachna
|रचनाकार=नेमिचन्द्र जैन
|संग्रह=एकान्त / नेमिचन्द्र जैन; तार सप्तक / अज्ञेय
}}
{{KKCatkavita}}<poem>
धूल भरी दोपहरी
 
धरती के कण-कण में गूँजी आकुल-सी स्वर-लहरी ।
  :::सरल पल आते-जाते :::करुण सिकता भर लाते 
एक मूर्च्छना-सी प्राणों पर बेमाने बरसाते
 
अलसता होती गहरी ।
  :::मधुर अनमनी उदासी :::एक धूमिल रेखा-सी-- 
छाई है; बहता जाता है पवन अरुक संन्यासी
 
कौन देश की ठहरी ?
 
आ कर यों चल दिए कहाँ ओ जग के चंचल प्रहरी ?
 
धूल भरी दोपहरी ।
 
(1937 में बरुआसागर में रचित)
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
3,286
edits