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ओइ के खंडहर / नरेश सक्सेना

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|संग्रह=समुद्र पर हो रही है बारिश / नरेश सक्सेना
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'''(उत्तरी अफ़्रीका में रोमन साम्राज्य के अवशेष}
 
गोरी औरतें सज रही हैं
 
अभी गुलाम आएंगे
 
काली पीठों पर कोड़े खाते हुए
 
उन्हें याद आएंगे अपने बिके हुए शिशु
 
जब गोरे बच्चे हँसते हुए उन्हें दिखेंगे
 
जो सीख रहे होंगे बोझा ढोना
 
काली पीठों पर
 
कोड़े खाते हुए अनजाने देशों में
 
वहाँ भी सज रही होंगी गोरी औरतें
 
गोरे बच्चे हँस रहे होंगे।
</poem>
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