दोनों को इक अदा में रज़ामन्द कर गई<br><br>
शक़ चाक़ हो गया है सीना ख़ुशा लज़्ज़त-ए-फ़राग़ <br>
तक्लीफ़-ए-पर्दादारी-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर गई<br><br>
वो बादा-ए-शबाना की सरमस्तियाँ कहाँ <br>
उठिये बस अब के कि लज़्ज़त-ए-ख़्वाब-ए-सहर गई<br><br>
उड़ती फिरे है ख़ाक मेरी कू-ए-यार में <br>
मस्ती से हर निगह तेरे रुख़ पर बिखर गई<br><br>
फ़र्दा-ओ-दीं का तफ़र्रूक़ा तफ़रक़ा यक बार मिट गया <br>कल तुम गए के कि हम पे क़यामत गुज़र गई<br><br>
मारा ज़माने ने 'असदुल्लह ख़ाँ" तुम्हें <br>
वो वलवले कहाँ, वो जवानी किधर गई <br><br>