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{{KKRachna
|रचनाकार=शीन काफ़ निज़ाम
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<poem>
परबत पर इक फूल खिला है
देखें वो किस को मिलता है

तन्हाई से चल कर पूछें
सन्नाटा क्या सोच रहा है

सूरज मेरे पीछे लेकिन
मेरे आगे कौन खड़ा है

इक सूखा आवारा पत्ता
जाने किस को ढूंढ रहा है

हर इक दिल में शौक़ शिगुफ़्ता
हर सर पर आसेबे अना है

रस्ते की सूनी आँखों में
दर्द का दरिया डूब रहा है

फैल रहा है शहरों शहरों
सन्नाटा कोहराम हुआ है

जाने कौन है मेरे जैसा
मेरे ही घर में रहता है
</poem>
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