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{{KKRachna
|रचनाकार=शीन काफ़ निज़ाम
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<poem>
इस क़द्र भी तो बेमिसाल न हो
कि किसी बात का मलाल न हो

जाने दी आँख को दुआ किस ने
तेरे घर मोतियों का काल न हो

बस कोई लम्हा ज़िन्दगी हो जाय
फिर शबो-रोज़ो-माहो-साल न हो

पत्ते-पत्ते पे तू बजा लेकिन
देखना कोई डाल-डाल न हो

कह रहे हैं कि रात ख़तम हुई
कहने वालों की कोई चाल न हो

तुम जिसे धूप कह रहे हो 'निज़ाम'
साय-ए-रब्बे जुलजलाल न हो
</poem>
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