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रात पी ज़म-ज़म पे मय और सुबह-दम <br>
धोए धब्बे जामाजाम-ए-एहराम के <br><br>
दिल को आँखों ने फँसाया क्या मगर <br>
ये भी हल्क़े हैं तुम्हारे दाम के <br><br>
शाह के की है ग़ुस्ल-ए-सेहत की ख़बर <br>
देखिये दिन कब फिरें हम्माम के <br><br>
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया <br>
वरना हम भी आदमी थे काम के<br><br>