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{{KKRachna
|रचनाकार=शीन काफ़ निज़ाम
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<poem>
मन रख के अपना गुम्बदे-बेदर के आस-पास
इक साँप घूमता है गुले-तर के आस-पास

अक़ब्र की आग गैरते-अफई को खा गई
क्या ढूँढ़ते हैं लोग समुन्दर के आस-पास

आफ़ाक़ के क़रीब से देखो तो अन्कबूत
फैला रही है पाँव कलैंडर के आस-पास

चूहे के दांत से कभी तोते की चोंच से
इक दिन पहुँच ही जाएगा पत्थर के आस-पास
</poem>
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