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|रचनाकार=शीन काफ़ निज़ाम
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<poem>
सराबी सिलसिले अच्छे लगेंगे
यूँ ही से वास्ते अच्छे लगेंगे

गली कूचे बड़े अच्छे लगेंगे
ये मंज़र दूर से अच्छे लगेंगे

अभी सूरज हमारे सामने है
ये किस्से दिन ढले अच्छे लगेंगे

निगाहों में अभी हैं ख़्वाब रोशन
अभी तो रतजगे अच्छे लगेंगे

हमारी ज़िंदगी की दास्ताँ में
तुम्हें कुछ वाकये अच्छे लगेंगे

इन्हें महफूज़ रखना कल तुम्हें भी
नविश्ते आज के अच्छे लगेंगे

हमारे पास क्या शोहरत, न दौलत
उन्हें हम किसलिए अच्छे लगेंगे

ज़रा दो-चार सदमे और सह लो
हमारे फ़लसफ़े अच्छे लगेंगे
</poem>
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