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दुःख / शीन काफ़ निज़ाम

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<poem>
मैं
हज़ार आँखों से
उसको देखता हूँ
वो
हज़ार हाथों से
मुझ को थामती है
हम हज़ारों कानों सुनवाए गए हैं
अब हज़ारों होंठों पर फैले हुए हैं
दीखने से
ज़्यादा दिखलाए गए हैं
और सुनवाए गए हैं
और फैलाए गए हैं
हम अभी तक अनछुए हैं
</poem>
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