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|रचनाकार=शीन काफ़ निज़ाम
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<poem>
अब तो वहाँ
निशान है
जहाँ
कभी देवता की मूर्ति रही होगी
शिकस्ता शहतीर में
फंसा
बचा
ज़ंजीर का हल्का
जिस में
शायद कभी घंटी लटकती हो
सहन में राख है
किसी ने अलाव जलाया होगा
रोशनी और गर्मी के लिए
दरकती दहलीज़ पर
रेवड़ से बिछड़ी
भेड़
पुराने सिज्दे चुनती है
पीले पायदानों पर
नकूशे-पा उभरते हैं
</poem>
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