बात करते, के मैं लब तश्ना-ए-तक़रीर भी था <br><br>
युसुफ़ यूसुफ़ उस को कहूँ और कुछ न कहे, ख़ैर हुई <br>गर बिगाड़ बैठे तो मैं लायक़-ए-तता'ज़ीर भी था <br><br>
देख कर ग़ैर को क्यूँ हो न कलेजा ठंडा <br>
पेशे में ऐब नहीं, रखिये न फ़र्हाद को नाम <br>
हम ही आशुफ़्तासरों में वो जवाँ "मीर" भी था <br><br>
हम थे मरने को खड़े पास न आया न सही <br>
आख़िर उस शौख़ शोख़ के तरकश में कोई तीर भी था <br><br>
पकड़े जाते हैं फ़रिश्तों के लिखे पर नाहक <br>