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|संग्रह=
}}
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<poem>
1
वह हँसती है
मानो स्त्री न हो
सिर्फ हँसी हो
कौंधती है हँसी
तीखे, नुकीले, बनैले
शब्दों के सामने
दमक से
कुन्द करती है
सबकी धार
हँसी है
अनवरत झरता
झरना,
शीतल, पारदर्शी
चमकते जल के पास
ठिठक गए हैं
सियाने शिकारी,
व्यग्र ब्याध सँपेरों के पाँव
हँसी है
रिमझिम बारिश,
भींगता है जंगल
पुराने नये पेड़
सूखी हरी पत्तियाँ
शाखाएँ, तने, जड़
पषु, पंछी, कीड़े, सरीसृप
धोना चाहती है
सबके धूल
मैल
विष सारे
हँसी है
कि धैर्य,
टूटेगा तो
आयेगी बाढ़
2.
हँसी है कि
उड़ती
डोलती फिरती हैं
तितलियाँ
दंतपंक्तियों की द्युति से दमकती
श्वेत शुभ्र तितली
पुतलियों की राह
मन में
उतरती है तो
अन्तर्लोक में
होता है
सूर्योदय
टेसू फूल होठों से
उड़ती तितलियाँ
नसों में
उतरती हैं तो
तेज-तेज प्रवाह में
आता है उफान
ऊँचा उठता ज्वार
नीले आसमान के पार
जिसके मार से
बिखर जाते हैं अणु-अणु,
उड़ती है रेत
3.
वह हँसती है तो
पलाश वन में
लग जाती है आग
धधकती लपकती लौ
अंतरिक्ष की ओर
सूर्योदय तक
दहकता रहता है क्षितिज
वह हँसती है तो
बरस जाते हैं बादल
गहरे हरे
चमचम पत्ते
बदल जाते हैं
पखेरूओं में
वनपाखियों के कलरव से
गूँजता है दिगन्त
सकुचा जाते हैं
बहेलियों के जाल
</poem>
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|संग्रह=
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<poem>
1
वह हँसती है
मानो स्त्री न हो
सिर्फ हँसी हो
कौंधती है हँसी
तीखे, नुकीले, बनैले
शब्दों के सामने
दमक से
कुन्द करती है
सबकी धार
हँसी है
अनवरत झरता
झरना,
शीतल, पारदर्शी
चमकते जल के पास
ठिठक गए हैं
सियाने शिकारी,
व्यग्र ब्याध सँपेरों के पाँव
हँसी है
रिमझिम बारिश,
भींगता है जंगल
पुराने नये पेड़
सूखी हरी पत्तियाँ
शाखाएँ, तने, जड़
पषु, पंछी, कीड़े, सरीसृप
धोना चाहती है
सबके धूल
मैल
विष सारे
हँसी है
कि धैर्य,
टूटेगा तो
आयेगी बाढ़
2.
हँसी है कि
उड़ती
डोलती फिरती हैं
तितलियाँ
दंतपंक्तियों की द्युति से दमकती
श्वेत शुभ्र तितली
पुतलियों की राह
मन में
उतरती है तो
अन्तर्लोक में
होता है
सूर्योदय
टेसू फूल होठों से
उड़ती तितलियाँ
नसों में
उतरती हैं तो
तेज-तेज प्रवाह में
आता है उफान
ऊँचा उठता ज्वार
नीले आसमान के पार
जिसके मार से
बिखर जाते हैं अणु-अणु,
उड़ती है रेत
3.
वह हँसती है तो
पलाश वन में
लग जाती है आग
धधकती लपकती लौ
अंतरिक्ष की ओर
सूर्योदय तक
दहकता रहता है क्षितिज
वह हँसती है तो
बरस जाते हैं बादल
गहरे हरे
चमचम पत्ते
बदल जाते हैं
पखेरूओं में
वनपाखियों के कलरव से
गूँजता है दिगन्त
सकुचा जाते हैं
बहेलियों के जाल
</poem>