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|रचनाकार=नईम|संग्रह = लिख सकूँ तो / नईम
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<poem>
लिख सकूँ तो—
प्यार लिखना चाहता हूँ,
ठीक आदमजात सा
बेखौफ़ दिखना चाहता हूँ।
थे कभी जो सत्य, अब केवल कहानी
नर्मदा की धार सी निर्मल रवानी,
पारदर्शी नेह की क्या बात करिए-
किस क़दर बेलौस ये दादा भवानी।
लिख सकूँ तो—<br>प्यार के हाथोंप्यार लिखना चाहता हूँघटी दर पर बज़ारों, <br>ठीक आदमजात सा <br>बेखौफ़ दिखना आज बिकना चाहता हूँ। <br><br>
थे कभी जो सत्य, अब केवल कहानी<br> आपदा-से आये ये कैसे चरण हैं ?नर्मदा की धार सी निर्मल रवानी, <br>बनकर पहेली मिले कैसे स्वजन हैं ?पारदर्शी नेह मिलो तो उन ठाकुरों से मिलो खुलकर—सतासी की क्या बात करिए-<br>किस क़दर बेलौस ये दादा भवानी। <br><br>उम्र में भी जो ‘सुमन’ हैं
प्यार के हाथों<br>घटी दर पर बज़ारों,<br> आज बिकना चाहता हूँ। <br><br> आपदा-से आये ये कैसे चरण हैं ?<br>बनकर पहेली मिले कैसे स्वजन हैं ?<br>मिलो तो उन ठाकुरों से मिलो खुलकर—<br>सतासी की उम्र में भी जो ‘सुमन’ हैं<br><br> कसौटी हैं वो कि जिसपर-<br>नेह के स्वर<br>ताल यति गति लय<br>
परखना चाहता हूँ।
</poem>
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