भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इन-उनकी / नईम

36 bytes added, 06:11, 13 जनवरी 2010
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= नईम |संग्रह=}}{{KKCatNavgeet}}<poem>रहते आए 
जनम जनम से
 
अमलदारियों में इन-उनकी
 
रंग, रूप, खुशबू की खातिर
 
खिले क्यारियों में इन-उनकी।
 
हाल पूछते हो क्या अपने?
 
आते नहीं नींद में सपने
 
रातें रहीं बदलती करवट
 
बेकरारियों में इन-उनकी।
 
अपने करे धरे पर पानी
 
फेर रहे हैं वो लासानी
 
नाचा किए विवश हो होकर,
 
हम नचारियों में इन-उनकी।
 
बिना पोस्टर के विज्ञापित
 
बिकने को हैं हम अभिशापित
 
दबे हुए हैं जाने कब से
 
हम बुखारियों में इन-उनकी।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits