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{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
}}
[[Category:पद]]
<poem>
न्हात जमुना मैं जलजात एक दैख्यौ जात
जाको अध-उरध अधिक मुरझायौ है ।
कहै रतनाकर उमहि गहि स्याम ताहि
बस-बासना सों नैंकु नासिका लगायो हैं ॥
त्यौं हीं कछु घूमि झूमि बेसुध भये कै हाय
पाय परे उखरि उभाय मुख छायौ है ।
पाए घरी द्वैक मैं जगाइ ल्याइ ऊधौ तीर
राधा-नाम कीर जब औचक सुनायौ है ॥
</poem>
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