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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
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बात चलैं जिनकी उड़ात धीर धूरि भयौ,
ऊधौ मंत्र फूँकन चले हैं तिन्हें ज्ञानी ह्वै ।
कहै रतनाकर गुपाल के हिये मैं उठी,
हूक मूक भायनि की अकह कहानी ह्वै ॥
गहबर कंठ ह्वै न कढ़न संदेश पायौ,
नैन मग तौलौं आनि बैंन अगवानी ह्वै ।
प्राकृत प्रभाव सौ पलट मनमानी पाइ,
पानी आज सकल संवारयौ काज बांनी ह्वै ॥19॥
</poem>
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