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{{KKRachna
|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
}}
[[Category:पद]]
<poem>
लै कै उपदेश-औ-संदेस पन ऊधौ चले,
सुज्स-कमाइबैं उछाह-उदगार मैं ।
कहै रतनाकर निहारि कान्ह कातर पै,
आतुर भए यौं रह्यौ मन न सँभार मैं ॥
ज्ञान-गठरी की गाँठि छरकि न जान्यौ कब,
हरैं-हरैं पूँजी सब सरकि कछार मैं ।
डार मैं तमालनि की औअर कछु बिरमानी अरु,
कछु अरुझानी है करीरनि के झार मैं ॥22॥
</poem>
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|रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर'
}}
[[Category:पद]]
<poem>
लै कै उपदेश-औ-संदेस पन ऊधौ चले,
सुज्स-कमाइबैं उछाह-उदगार मैं ।
कहै रतनाकर निहारि कान्ह कातर पै,
आतुर भए यौं रह्यौ मन न सँभार मैं ॥
ज्ञान-गठरी की गाँठि छरकि न जान्यौ कब,
हरैं-हरैं पूँजी सब सरकि कछार मैं ।
डार मैं तमालनि की औअर कछु बिरमानी अरु,
कछु अरुझानी है करीरनि के झार मैं ॥22॥
</poem>