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|रचनाकार=घनानंद
}}
[[Category:कवित्त]]{{KKCatKavitt}} ::::'''कवित्त'''<br><brpoem>छवि को सदन मोद मंडित बदन-चंद<br>::तृषित चषनि लाल, कबधौ दिखाय हौ।<br>चटकीलौ भेष करें मटकीली भाँति सौही<br>::मुरली अधर धरे लटकत आय हौ।<br>लोचन ढुराय कछु मृदु मुसिक्याय, नेह<br>::भीनी बतियानी लड़काय बतराय हौ। <br>बिरह जरत जिय जानि, आनि प्रान प्यारे,<br>::कृपानिधि, आनंद को धन बरसाय हौ।।5।।हौ।<br/poem>