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लाजनि लपेटि चितवनि / घनानंद

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|रचनाकार=घनानंद
}}
[[Category:कवित्त]]{{KKCatKavitt}} ::::'''कवित्त'''<br><brpoem>लाजनि लपेटि चितवनि भेद-भाय भरी<br>::लसति ललित लोल चख तिरछानि मैं।<br>छबि को सदन गोरो भाल बदन, रुचिर,<br>::रस निचुरत मीठी मृदु मुसक्यानी मैं।<br>दसन दमक फैलि हमें मोती माल होति,<br>::पिय सों लड़कि प्रेम पगी बतरानि मैं।<br>आनँद की निधि जगमगति छबीली बाल,<br> ::अंगनि अनंग-रंग ढुरि मुरि जानि मैं।।1।।मैं।<br/poem>