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|रचनाकार=रंजना जायसवाल
|संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / रंजना जायसवाल
}}
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<poem>
गेहूँ की तरह
उगाई जाती है
काटी जाती है
पीसी जाती है
बेली जाती है
सेंकी जाती है
और तीन-चार
निवालों में ही
निगल ली जाती है...
स्त्री।
</poem>
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गेहूँ की तरह
उगाई जाती है
काटी जाती है
पीसी जाती है
बेली जाती है
सेंकी जाती है
और तीन-चार
निवालों में ही
निगल ली जाती है...
स्त्री।
</poem>