भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उपरान्त / रंजना जायसवाल

580 bytes added, 18:27, 23 जनवरी 2010
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना जायसवाल
|संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / रंजना जायसवाल
}}
{{KKCatKavita‎}}
<poem>
गेहूँ की तरह
उगाई जाती है
काटी जाती है
पीसी जाती है
बेली जाती है
सेंकी जाती है

और तीन-चार
निवालों में ही
निगल ली जाती है...

स्त्री।
</poem>