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|रचनाकार=मनीषा पांडेय|संग्रह=
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प्‍यार में डूबी हुई लड़कियाँ
 
अब लड़की नहीं रही
 
न नदी, न पतंग, न आबशार....
 
प्‍यार में डूबी हुई लड़कियाँ
 
अकेली थीं
 
अपने घरों, शहरों, मुहल्‍लों में
 
वो और अकेली होती गईं
 
माँ-पिता-भाई सब जीते
 
प्‍यार मे डूबी हुई लड़कियों से
 
लड़कियाँ अकेली थीं,
 
और वे बहुत सारे....
 
प्‍यार में डूबी हुई लड़कियाँ
 अब मांएं माँएँ हैं ख़ुद 
प्‍यार में डूबी हुई लड़कियों की
 
और डरती हैं
 
अपनी बेटी के प्‍यार में डूब जाने से
 
उसके आबशार हो जाने से...
</poem>
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