भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
"ओ विशाल तरु!<br>
शत सहस्त्र सहस्र पल्लवन-पतझरों ने जिसका नित रूप सँवारा,<br>
कितनी बरसातों कितने खद्योतों ने आरती उतारी,<br>
दिन भौंरे कर गये गुंजरित,<br>
Anonymous user